Saturday, 1 August 2020

मित्रता

मित्रता पर कभी, कहीं, कुछ लिखूँ

मैंने सोचा था कभी,

किन्तु तब लिखने को था कुछ नहीं,

पर हाल के हालात देख कर

विचारधारा मेरी भी बनी,

कोई मित्र अपने मित्र से चाहता है क्या,

त्याग, बलिदान, दोषों से प्रेम और क्या,

किन्तु आलावा इसके, और चाहता है कि

यदि उससे पीछे रह सके तो अच्छा

और यदि पीछे न रह सके तो ,

उसका मित्र मात्र उसके समान ही उन्नति करता जाय

कहीं जीवन की दौड़ में उससे आगे न निकल जाय

मित्रता ही केवल एक स्वार्थ बन कर रह गई

नया स्वार्थ साधता है मनुष्य करके मित्रता नई

पर मित्रता में ही मैत्री की हो गई कमी

ज्यों सत्यता में सत्य की हो गई कमी

*धंनजय कुमार*

 

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