Friday, 31 July 2020

मानव समाज मे मोटापा -भाग 1

ज्यादा वज़न या मोटापा मानव समाज की महत्वपूर्ण सच्चाई है। लेकिन मोटापा मानव उदविकस के इतिहास मे नया प्रकरण है, जोकी लोगों को खाने के सुरक्षा मिलने के बाद ही प्रकट हुआ है। दुनिया के लगभग हर के भाग मे, पिछले 60 सालों मे सामाजिक, अर्थशास्तरीय और तकनीकी बदलावों से जीवन का तरीका पूर्ण रूप से बदल गया है/ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 1975 से अभी तक मोटे लोगों के संख्या मे तीन गुणी बढ़ोतरी हुई है। 2016 मे  190 करोड़ वयस्क (18 साल से ऊपर) ज्यादा वजन के थे और उनमे से 65 करोड़ मोटे थे/ अब बच्चों मे भी इसके प्रकोप मे वृद्धि देखी जा रही है/ और तो और अभी के कोरोना काल मे, covid 19 से संक्रमित होने के लिए, हृदय, श्वास और धमनियों की बीमारियों के साथ-साथ मोटापे को भी एक महत्वपूर्ण कारक माना जा है। मोटे लोग जिन्हें डायबिटीज़ और उच्च रक्तचाप की शिकायत है, उनके कोरोना से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है।

अधिक वजन और मोटापा क्या है? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मानव शरीर मे अत्यधिक चर्बी जमा होना जो स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल हो, मोटापा है। इसे मापने के लिए व्यक्ति का बी॰ एम॰ आई॰ इंडेक्स निकाला जाता है। 25- 29 बी॰ एम॰ आई॰ अत्यधिक वजन को प्रदर्शित करता है और 30 बी॰ एम॰ आई॰ से अधिक मोटापे को बताता है। यह तो स्वास्थ्य के संदर्भ मे हुआ। परंतु मोटापा मानव समाज मे भी एक मुख्य मुद्दा रहा है।

ग्यारह पाश्चात्य और गैर पाश्चात्य समकालीन शोध यह बताते हैं कि मोटापे का बहुत ही तीव्र तरीके से भूमंडलीकरण हो रहा है। 1990 से पहले मोटापा एक अच्छेपन को दर्शाता था। जैसे कि खाते-पीते घर से आतें हैं। इसका मतलब है कि मोटापे को अच्छा देखा जाता था। और पतलेपन की तुलना में मोटापा सही मायने में पोषण के मायने बताता था। और तो और आज कल के उल्ट जहां पतले और स्लिम होने कई तरीकों का धड़ल्ले से  प्रसारित किया जाता है,  तब लोगों को मोटे और भरे-पूरे बनने के लिए विज्ञापन दिया जाता है/

जबकी पिछले तीन एक दशक से मोटापे को निंदनीय बना दिया गया है, जहाँ भूमंडलीकरण से पहले मोटापा उत्पादकता, अमीरी, और सुंदरता का पर्याय समझा जाता था, वहीं अब इसको कुरूपता, अनाकर्षण, और अवांछनीयता का पर्याय माना जाता है। और तो और समकालीन चिकित्सा पद्ति में यह बीमारी का स्रोत मान लिया गया है। इसको समझना सरल नहीं है। बल्कि यह एक जटिल विषय है जिसमे मूलरुप से इमोशनल, मनोवैज्ञानिक, और सामाजिक आयाम भी सम्मिलित हैं।

इसके कारणों  को समझना और भी जटिल है। हाल ही का फिजी में हुआ शोध से यह निष्कर्ष निकलता है की भूमण्डलीयकरण के बाद, टेलीविजन,सोशल मीडिया, और जनसम्पर्क  के नए तकनीकों के द्वारा, कैसे पाश्चात्यता की एक ही, विचारधारा, को कैसे गैर पाश्चात्य देशों में निरंतर प्रसारित किया जा रहा है। कैसे इन माध्यमों द्वारा, पाश्चात्य रिवाजो, मूल्यों, संस्कृतियों और निःसन्दहे रूप से मनोरंजन को गैर पाश्चात्य संस्कृतियां अपनाने लगीं हैं।इस पूरे प्रक्रिया का प्रभाव मोटापे और पतलेपन की अवधारणा पर भी पड़ा है। कैसे स्वास्थ्य के अलावा मोटापा एकहेल्थ के पैथोलॉजीके रूप में परिभाषित किया जाता है।

मगर कुछ भी समझने से पहले हमे जानना होगा की मोटेपन को मानव संस्कृति मे कैसे देखा जाता था/ इसके बारे मे हम अन्य अंक मे जानेंगे/

 


 

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