इस जीवन के समुद्र के सभी दिशाओं में,
भविष्य का अंधकाररूपी जल विद्यामान है,
इधर जल है, उधर जल है,
जल ही जल सभी तरफ है
इसके पीछे दूर, बहुत दूर क्षितिज पर,
जहाँ आकाश समुद्र पर झुका सा प्रतीत हो रहा है,
एक द्वीप जैसी सरंचना,
मेरी दीठ को दिखती है,
शंभवत: यह भ्रम हो,
किंतु
यह एक सुखद भ्रम है/
डॉ धनंजय क़ुमार
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