Sunday, 23 August 2020

 मक़दूर[1] हो तो ख़ाक[2] से पूछूं कि ऎ लईम[3]

तू ने वह गनजहा-ए गिरां-मायह[4] क्या किये

(यदि कुछ पूछने की क़ाबलियत हो, तो मैं मिटटी से पूछूँगा कि, ओ कंजूस, तूने उन सब अनमोल खजानों का क्या किया, जिसको तेरे सुपुर्द किया था, (या जो तुझमें दफ़न है))

~ग़ालिब



[1] कुछ करने की क़ाबलियत

[2] मिटटी, बर्बादी, राख

[3] कंजूस

[4] अनमोल खजाने

No comments:

Post a Comment