Tuesday, 11 August 2020

मानव समाज मे मोटापा -भाग 2

 

भाग 1 यहाँ पढ़ें

अब संस्कृति के बदलाव के बात करतें है। परन्तु यह संस्कृति का बदलाव हमें अचंभित करता है और सोचने पर मजबूर करता है के प्राचीन संस्कृतियां मानव शरीर के प्रकार को या के मोटापे के कैसे देखतीं थीं। उस उत्तर को जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि प्राचीन संस्कृतियों का अध्ययन करने के लिए उनके द्वारा पर्यावरण पर छाप ही है जिनसे हम उनके बारें में जान सकतें हैं। इन छापों में पुराने पुरावशेष और मानव अवशेष आतें हैं। उत्खनन में कहीं मानव कंकाल और अस्थियां भी पायीं गयीं हैं/किन्तु यह सभी पुरावशेष और मानव अवशेष मोटापे के किसी एक संस्कृति या संस्कृतीयों के बारे में कुछ भी बताने में अपूर्ण हैं। इसके अपेक्षा, इन अवशेषों द्वारा प्राचीन काल के लोगों की लम्बाई, शरीर का अंदाजा लगाना ज़्यादा सरल है। परन्तु इसके द्वारा किसी प्राचीन व्यक्ति का भार या मोटापे का अंदाजा लगाना कठिन है। क्योंकि किसी भी मनुष्य की अस्थियों के माध्यम से उसका वजन पता नहीं किया जा सकता है। क्योंकि  एक तो अस्थियों के साथ मांस और चर्बी कोशिकायें वजन बनाने में महत्वपूर्ण होतीं है, जो की मरने के बाद जल्द ही नष्ट हो जाती हैं। दूसरा अस्थियों का अपना भी भार होता है, जो की कुछ भी हो सकता है। जैसेकि एक छोटा व्यक्ति एक लम्बे व्यक्ति से भारी हो सकता है। क्योंकि टिश्यू और फैट मांस पेशियों के अलावा,अस्थियों का अपना भार भी होता है। सो पुरातात्विक परिपेक्ष्य से इस बारे में पता करना कठिन है, अतः इसके लिए हमें अपनी दृष्टि कुछ अन्य अवशेषों की ओर करनी होगी। जैसे की पुरावशेष, प्राचीन मानव द्वारा छोड़े गए अवशेष/

विल्लेंडोर्फ की वीनस एक प्रसिद्ध पुरातात्विक अवशेष है जो प्राचीन समय मे मोटापे के बारे मे बताता है। ये अवशेष मुख्यत: 50000 से 10000 साल पहले के यूरोप और मध्य एशिया के उत्तर पुरापाषाण काल के हैं। 1908 मे ऑस्ट्रिया मे खोजी गयी, यह एक 11 सेंटीमीटर लाईम स्टोन से गढ़ी मूर्ति है। इसको लाल रंग से सुसज्जित किया गया है। इसका काल लगभग 25000 से 27000 साल पहले का है। इसके शरीर के बनावट परिपूर्ण है और शारीरिक रूप से सही है। परन्तु  इसका चेहरा और सिर का भाग एक टोपी से ढके हुये हैं। परंतु एक चीज है जो प्रमुखता लिए हुये है। वह महज भरे-पूरे बदन से ज्यादा है। वह मोटी है। इसकी खोज के उपरांत से ही, वीनस को कई तरहों से परिभाषित किया जाता रहा है। इसे कभी उत्पादकता के देवी, तो कभी मात्र एक खिलौना, तो कभी गर्भवती महिला के सीखने का उपकरण बताया गया है। लेकिन पूर्ण रूप से जानकारी के अभाव मे, इसके सही माइने के बारे मे हम अनुमान ही लगा सकते हैं।

इसी संदर्भ मे, लगभग 10000 साल के अंतराल मे 200 से ज्यादा विशिष्ट मूर्तियां यूरोप और मध्य एशिया से मिलीं हैं। यधपी सभी कलाकृतियां महिला के रूप को ही बताती हैं तबभी सभी अलग-अलग शरीर के प्रकार को प्रतिबिंबित करतीं हैं। सभी मोटी नहीं हैं। इसीलिए यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता की वो मोटापे को दर्ज करती हैं।

कुछ और प्रसिद्ध कलाकृतियां नव पाषाण काल की हैं जो की माल्टा और पास की द्वीपों मे पाई गयी हैं। लगभग 5000 साल पहले के यह मूर्तियां, जो की माल्टा की  मोटी स्त्रियाँ (fat ladies of malta) के  नाम से प्रसिद्ध हैं, बैठी और लेटी हुई स्त्रियों के कलाकृतियों को दर्शाती हैं। कइयों के सर गायब है। और जहां कहीं भी सर है तो वो बाकी शरीर के अनुपात मे बहुत ही छोटे रूप मे है। किसी के भी गर्भवती होने का पता नहीं चलता फिर भी सभी अत्यधिक वजन वाली हैं। ज़्यादातर माल्टा कलाकृतियां दफ़नाने के जगह और पूजा करने के स्थानों पर  मिलीं हैं। इसलिए पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों मे इनका प्रयोग नकारा नहीं जा सकता।

लेकिन पुरुषों का क्या? क्या पूर्व के इन अवशेषों मे मोटे पुरुषों का कोई सुराग़ मिलता है? एक गौटेमाला का जेड पत्थर से कलाकृति है जिसको फ्लैट लार्ड या फ्रॉगकहा जाता है। यह 700 ए डी के समय का है। जरूर वह व्यक्ति कोई विशेष रहा होगा। क्योंकि आम लोगों की कलाकृतियों में जेड पत्थर का प्रयोग नहीं होता था। वह मोटा भी है।  क्योंहम नहीं जान सकते हैं।

यह सब, वीनस, मोटी माल्टा, और मोटा लॉर्ड ओर फ्रॉग, यह प्रमाणित करतें हैं की पहले के समय  मे मोटापे को बहुत ही सम्मान से देखा जाता होगा/  या कहें के जिन समाजों से यह  कलाकृतियां मिलीं है उन समाजों मे मोटापे को अच्छा मानते थे या की मोटापे मे कोई खराबी नहीं मानी जाती थी/

मानव समाज के अध्ययन हमे बताते हैं कि कुछ मात्रा मे मोटापा लगभग सभी मानव सभ्यताओं मे उपस्थित रहा है/ सिवाए उन समुदायों को छोड़ कर जो की हमेशा से ही संसाधनों के अभाव वाले वातावरण मे ही रहें हैं/ यह भी कहा जा सकता है के मोटे लोगो की कभी पूजा भी की  जाती होगी/ तो कभी खराब नजरों से भी देखा जाता होगा/ तो कभी उन लोगों को साधारण तौर से लिया जाता होगा/ लेकिन फिजी का मानव वैज्ञानिक अध्ययन हमे बताता है कि सांस्कृतिक अवधारणाएँ, पहले के समय के अपेक्षा ,समकालीन समय मे अधिक संकुचित और कम विविधता पूर्ण होती जा रहीं हैं/

हमे एक बहुत गहन और बहुआयामी संशोधन की आवश्यकता होगी जिसमे के पुरातत्व विज्ञान, मानव विज्ञान, कार्यिकी विज्ञान, मनो विज्ञान, समाज शास्त्र  और जन स्वास्थ्य  का समावेश हो । सही माइने मे मोटापे और मानव समाज के  अंत संबंधों को जानने के लिए इस तरह का संशोधन सही मायने  मे चुनौती पूर्ण होगा क्योंकि मोटापा एक जान स्वास्थ्य चुनौती  के साथ- साथ नकारात्मक सामाजिक पूर्व धारणा को भी लेकर इस विषय को कहीं और जटिल बनाता है। लेकिन  इस जटिलता का मतलब यह नहीं है के ये संशोधन करने योग्य नहीं हैं।

 डॉ धनंजय कुमार

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