Sunday, 2 August 2020

मित्रता और संस्कृति



मैथिली शरण गुप्त जी ने बहुत ही खूबसूरती से निम्नलिखित पंक्तियों मे मित्रता को परिभाषित किया है:


‘तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,


जो सहला दे, मित्र वही है।


रूखे मन को, सराबोर कर,


जो नहला दे, मित्र वही है।


प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को ,


जो बहला दे , मित्र वही है।


अश्रु बूँद की, एक झलक से ,


जो दहला दे, मित्र वही है’।


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