मेरे समक्ष, चारों ओर,
समुद्र फैला विशाल,
और बीच समुद्र में,
गोतों पर गोता खाता मैं,
दाब ऊपर से,
गुरुत्व नीचे
जल की गहराईयों में खींचता मुझे लगातार,
सहारा तिनका का ढूँढ रहा था मैं,
इसी बीच दूर क्षितिज के पास
एक द्वीप दीठ को दिखा,
तनिक उत्साह मन में त्वरित हुआ
अब हाथ-पैर भी मारने लगा मैं,
देखें पहुँच पता हूँ द्वीप पर, या,
गुरुत्व ले डूबेगा मुझे,
समुद्र की अथाह गहराईयों में,
डॉ. धनंजय कुमार
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