मस्त आँखों में
मस्त आँखों में शरारत
कभी ऐसी तो न थी
यूँही शरमाने की आदत
कभी ऐसी तो न थी
कोई बिजली है कि नस-नस में जो लहराती है
मुझे क्या जाने कहाँ ले के उड़ी जाती है
शोख़ अंगड़ाई क़यामत
कभी ऐसी तो न थी
दिल धड़कता है तो चेहरे पे निखार आता है
वो तो वो है उसे अपने पे प्यार आता है
जैसी अब है मेरी हालत
कभी ऐसी तो न थी
बहकी-बहकी हुई नज़रों का सलाम आता है
दिल-ए-बेताब ठहर उनका पयाम आता है
है जो अब मुझपे इनायत
कभी ऐसी तो न थी
मस्त आँखों में
मस्त आँखों में शरारत
कभी ऐसी तो न थी
~कैफ़ी आज़मी
फिल्म- शमा (1961)
गायिका -सुरैया
संगीत -गुलाम मुहम्मद
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