Thursday, 19 November 2020

छठ पर्व – प्राचीन सूर्य उपासना की एक जीवित विरासत

 

प्रत्येक वर्ष करोड़ों लोग उत्तर भारत में कई नदियों, नहरों और तालाबों के घाटों पर सूर्य का मुख्य उत्सव मनाते हैं, जो कि वैदिक भारत पूजा-पद्यति की एक जीवित विरासत है। दिवाली के छह दिन बाद, कार्तिक मास के षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व हिन्दू सभ्यता के केवल उन कुछ त्यौहारों में से है जो सूर्य देवता को समर्पित है। सूर्य देव और उनकी संगिनी ऊषा शायद समकालीन हिन्दू धर्म में वह स्थान नहीं रखते जोकि 4000 साल पहले रखते थे। किन्तु छठ पर्व के दौरान उसका प्रतिबिम्ब अवश्य दिखाई देता है, जहाँ वह सर्वश्रेष्ठ देव तुल्य हो जाते हैं।

प्राचीन समय में सूर्य के सर्वश्रेष्ठ देव होने के कई प्रतीक  उपलब्ध हैं। जैसेकि प्रसिद्ध  श्रुति गायत्री-मन्त्र   सवित्र देव को समर्पित है, जो स्वयं सूर्य का ही एक रूप है। वैदिक परंपरा के अनुसार सूर्य की आराधना उनके विभिन्न रूपों और नामों में की जाती है, जैसे सूर्य, सवित्र, मित्र, विष्णु, पूषण, विवस्वात, भग और आर्यमान। इन सभी को एक सामूहिक नाम 'आदित्य' से संबोधित किया जाता है। वैदिक भारत में सूर्य को इंद्र और वायु देवता के समकक्ष रखा जाता था। ऋग्वेद मे सूर्य परिवार के विभिन्न देवी-देवताओं का विभिन्न रूपों और तरीकों से ध्यान किया जाता था। और सभी के लिए अपनी-अपनी कहानी है।  ऋग्वेद के समय सूर्य को उसी तरह के अनुष्ठानों के माध्यम से प्रातः और संध्या पूजा जाता था, जैसा कि समकालीन समय में छठ पर्व मनाया जाता है।

छठ त्यौहार मुख्यतः चार दिनों का उत्सव है। आगे पढ़ें https://sablog.in/chhath-parv-nov-2020/


~डॉ. धनंजय कुमार


 

 

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