Saturday, 31 October 2020

मजाज़

 

रास्ते में रुक के दम ले लूँ मिरी आदत नहीं

लौट कर वापस चला जाऊँ मिरी फ़ितरत नहीं

और कोई हम-नवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं

ग़म-ए-दिल क्या करूँ वहशत-ए-दिल क्या करूँ 

 

जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूँ

इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूँ

एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ

ग़म-ए-दिल क्या करूँ वहशत-ए-दिल क्या करूँ 

~मजाज़

 

 

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